‘हिंदी नवरत्न’ में मिश्र बंधुओं ने लिखा है कि ‘समालोचना लिखना कोई साधारण काम नहीं है, वही मनुष्य आलोचना लिख सकता है जो ग्रंथों को भली-भांति समझ सके और उनके विषयों से अच्छी जानकारी और सत्यता रखता हो।’ आलोचकों को प्रतिभा सिद्ध होना चाहिए और श्रम साध्य भी। चंद्रदेव यादव इस दृष्टि से पैठे हुए आलोचक हैं, उनकी आलोचना दृष्टि कृतिनिष्ठ है। वे मूल्यांकन के निमित्त साहित....