आज के दौर में जब कविता एक शौक बन गया है। हर कोई कवि बनने के लिए बेकरार है। कुछ भी लिखकर, लिखे हुए को दोहराकर कवि होने का शौकिया तमगा टांग कर लहालोट हो रहे हैं न विचारधारा है न सरोकार है न ही लोकधर्मी कविता की परंपरा का बोध है। केवल लिख रहे हैं लाइव पाठ कर रहे हैं और संग्रह भी धड़ाधड़ आ रहे हैं।
ऐसे वक्त में नरेंद्र कुमार का संग्रह नीलामघर की कविताएं सुकून देती हैं। और नरें....