मुकेश कुमार

फेंकते रहो: फेंक-कला का अमृतकाल

ये सांस्कृतिक पुनरुत्थान का युग है। आप माने या न माने, दुनिया स्वीकार करे या न करे, मगर देश संस्कृति के स्वर्णिम-काल को दोहरा रहा है। अतीत का सारा सांस्कृतिक वैभव सर्वत्र उपस्थित हो रहा है। सनातन जो कोहरे में छिप गया था अब अपने विराट रूप के साथ उपस्थित है। चारों दिशाएं उससे प्रकाशित हैं। देवता गण पुष्प वर्षा कर रहे हैं। 
कहीं भव्य मंदिर का निर्माण चल रहा है, कहीं सेवा....

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