पल्लवी प्रसाद

सूर्यावर्त

वह तब उसके आंचल से बंधा हुआ सारा दिन ‘आई-आई’ करता फिरता। उसका संसार उसका बेटा था और तब बेटे का संसार वह हुआ करती। कब उसके आंचल की गांठ ढीली पड़ गई और कब बेटा उसका पहलू छोड़कर निकल गया, उसे पता भी न चला। वह अपने दिमाग पर लाख जोर डालकर सोचती है, परंतु इस ‘कब और कैसे’ का थाह-पता नहीं लगा पाती है। विनायक के लिए बस बारहवीं कक्षा ही तो पास करना बाकी बचा है। शोभा उसके पास न होने पर ....

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