बात मेरे शर की है। जाने कब, फ्रलैट्स की सोलह मंजली ऊंची इमारत से आगे, एक छोटा अलूचे का पेड़ उग गया था। फल आने तो कब के बंद हो चुके थे। हां, नंगे-बूचे इस पेड़ पर कभी-कभार, इधर-उधर इक्का-दुल्ला पत्तियां जरूर दिख जाती थींµवे भी वंसत के अंतिम पड़ाव के आसपास ही। इसकी चाल तक संवला चुकी थी और कुछ इस तरह से झुर्रीदार हो चली थी जैसे किसी बूढ़ी औरत के हाथ हों। इसकी शाखाएं सूखकर कमजोर हो चुकी....