मधु कांकरिया

न थकना सीखा न तीर पर खड़े रहना

कई लोग होते हैं जो आइसबर्ग सदृश होते हैं, बहुत कम खुद को अनावृत्त करते हैं। इस कारण उनके कृतित्व से तो आप गाहे-बगाहे परिचित होते रहते हैं, पर उनके व्यक्तित्व से परिचित नहीं हो पाते हैं, क्योंकि एक अदृश्य तार खिंचा रहता है जिसके आगे प्रवेश निषिद्ध रहता है। शंभुनाथ जी भी मेरे लिए वैसे ही थे जिनके लेखन के जरिये उनकी बुलंद आवाज मुझ तक हमेशा पहुंचती रही, लेकिन व्यक्तिगत रूप से ....

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