पल्लवी प्रसाद

सूर्यावर्त

हरी-हरी ऊंची दूब से ढंके खेतों के मेड़- ‘सांय!’ नाला, गड़हे- ‘सांय!’ खेतों में खड़ी उड़द-‘सांय!’ ...और शोभा की बस अंततः ठांय से रुकी। लोगों को झटका लगा। कोई गंवई बस-स्टॉप मालूम पड़ता है। बस के दरवाजों की तरफ होने वाली हलचल से जान पड़ता है कि बस में यात्री चढ़-उतर रहे हैं। सामने सड़क किनारे, एक बरगद का पेड़ खड़ा है। एक मामूली सी गेरुआ-रंग इमारत पर मर्दानगी बढ़ाने की दवा का इश्तेहार र....

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