आज की भीड़ में से कइयों को वह सीधे तौर पर जानती भी थी, जिनसे वह ‘हाय’, ‘हेलो’ कर रही थी। विल्सन प्रसाद को यह सब देखकर हैरत भी होता था कि इतने साल से संपादक होने के बावजूद उसे उतने लोग नहीं पहचान सके थे, जितने आज माया को लोग जानने-पहचानने लगे हैं। लेकिन फिर यह सोचकर तसल्ली भी होती थी कि आखिर माया को इतनी चर्चित हस्ती बनाने में उसका भी तो योगदान है। पार्टी में कई लोग ऐसे थे ....