प्रीति सिन्हा

अंधेरे गलियारे

परेशान-सी महिमा कभी फर्स्ट फ्रलोर से फिफ्रथ फ्रलोर पर जाती, कभी बरामदे में दौड़ती, कभी चिल्लाती, कभी विनती करती। उसकी सांसें फूल रही थी। हाथ-पैर कांप रहे थे। किंतु उसकी स्थिति पर किसी ने ध्यान नहीं दिया।
 शाम हो चली थी। हॉस्पिटल में एक तरफ डे शिफ्रट के स्टॉफ जाने की तैयारी में थे, दूसरी तरफ नाइट शिफ्रट के स्टॉफ आ रहे थे। सभी अपने हॉस्पिटल यूनिफॉर्म को चेंज करने में लगे ....

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