रूसी साहित्य ने मुझे अच्छे और बुरे में अंतर समझाया। वह समय लाल क्रांति का सपना हिंदुस्तान में भी फलीभूत कर पाने वाले बावलों का था। इसे यूं कहूं तो ज्यादा सही होगा कि उस समय, यानी मेरे बाल्यकाल में, मेरी संगत ऐसे बावलों संग थी। ये लोग थे तो खांटी हिंदुस्तानी, सपने इनके लेकिन इनको पेंचिग और मास्को से आते थे। ये सभी स्वप्नदर्शी जमात के थे। आज विवेचना करता हूं तो समझ आता है कि ....