हरे घावों से
टप टप टपकता
लाल लहू
और टीसता अंग अंग
भीषण विभीषिका की ओर
इंगित करता रहा अपनी तर्जनी
पालतू भेड़िया दुम हिलाता
सांत्वना देता रहा
मानव लहू की गंध से
वो परिचित लगा
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हिन्दी साहित्य की पत्रिकाओं की भीड़ में अलग पहचान बनाने वाली 'पाखी' का प्रकाशन सितंबर, 2008 से नियमित जारी है।