‘पाखी’ का मार्च का अंक मिला। इससे पूर्व भी संयुक्तांक अद्भुत था। लेकिन ऐसा लगता है आपने पाठकों की प्रतिक्रिया छापनी बंद कर दी हैं। लेकिन फिर भी मन उद्वेलित होता है। सोचता हूं मन की बात कह ही डालूं।
आपने जीन शार्प की पुस्तक 'From Dictatorship To Democracy' के माध्यम से लेख के मौजूदा परिदृश्य के विश्लेषण के लिए बहुत से अह्म प्रश्न उठाए हैं। सही है कि तानाशाह अपनी सत्ता बचाए रखने क....
